मन जब पतझड़ होता है

एक कोना भर के हरियाली है मेरे घर में,
जब कभी मन पतझड़ होता है यहां चली आती हूं,
सहलाती हूं मनी प्लांट की कोमल पत्तियां,
एरिका पाम को बाहें भर गले लगाती हूं,
मोगरे की कली महकाती है सांसें मेरी,
सफेद गुलाब की कली जगाती है उम्मीद,
एक सुबह वह पूरी खिलेगी,
तुलसी का बस एक ही पौधा तो लगाया था,
साथ के गमलों में दो तीन और जम आए हैं ,
छोटा लगता है अब गमला एलोवेरा का,
कभी लगा लेती हूं चेहरे पर बस यूं ही,
कुछ डंडियां चाइनीज बम्बू की गाड़ दी थीं गमले में,
मर चला था चार दिवारी में, आज नभ निहारता है,
मेरा छोटा सा अजवाइन का पौधा बड़ा हो गया है,
स्वाद बढ़ जाता है इसकी कुछ पत्तियां से परांठों का,
बम्बू के गमले में खरपतवार उग आए,
मैंने भी उगने दिए, सोचा कल निकालूंगी,
अब सोचती हूं, काम का ना सही पर हरा तो है,
छोटे पीले फूल भी खिलते हैं कुछ पल को,
जब कभी मन पतझड़ होता है,
चली आती हूं इस कोने में फिर से हरी होने,
मेरे घर में एक कोना भर के हरियाली है…

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